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आज कुछ पल मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ Main chudna chahti hun
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अपने बेटे को इसी साल एक नर्सरी स्कूल में दाखिला कराया है परन्तु दिक्कत यह है कि स्कूल हमारे घर से लगभग 35 कि.मी. दूर है। स्कूल अच्छा है इसलिए अधिक फीस होने के बावजूद इसी स्कूल में दाखिला कराया।
स्कूल की टाइमिंग सुबह नौ बजे से दोपहर तीन बजे है। हम सुबह नौ बजे से पहले तैयार होकर एक साथ घर से निकलते हैं, मैं अपने आफिस चला जाता हूँ, मेरी पत्नी बच्चे को लेकर स्कूल चली जाती है तथा दोपहर तीन बजे स्कूल की छुट्टी होने पर बच्चे को लेकर सीधे घर आ जाती है।
हर शनिवार तथा सप्ताह में एक-दो दिन मेरी छुट्टी होने पर अथवा छुट्टी लेकर मैं बच्चे को लेकर स्कूल जाता हूँ। घर दूर होने के कारण बार-बार आना-जाना नहीं हो पाता.. इसलिए हम स्कूल के सामने बगीचे के लान में टाईम पास कर लेते हैं। ऐसा अनेक बच्चों के माता-पिता.. जिनका घर दूर है, करते हैं।
मिसेज भाटिया की बच्ची भी उसी स्कूल में हमारे बच्चे की क्लासमेट है। उनका घर दूर होने के कारण वह भी हमारी तरह सुबह नौ बजे आती हैं और छुट्टी होने पर दोपहर तीन बजे अपने बच्चे को लेकर घर जाती हैं।
इस बीच मेरी पत्नी और मिसेज भाटिया स्कूल के सामने लान में बैठकर अपना समय व्यतीत करते हैं। जिस दिन मेरी पत्नी की जगह मैं स्कूल जाता हूँ, उस दिन मिसेज भाटिया काफी उदास हो जाती हैं.. क्योंकि अकेले-अकेले उनका भी समय पास नहीं होता।
दूसरी महिलाएँ भी वहाँ होती हैं.. पर न जाने क्यों वो मेरी पत्नी के अलावा और किसी से ज्यादा मिक्सअप नहीं होती हैं।
मिस्टर भाटिया का अपना लोहे का बहुत बड़ा कारोबार है, वो सुबह 7 बजे फैक्टरी के लिए निकाल जाते हैं तथा देर रात लौटते हैं। इसलिए मिसेज भाटिया को ही प्रतिदिन अपने बच्चे को लाने.. ले जाने के लिए आना पड़ता है।
मिसेज भाटिया की उम्र लगभग 26-27 साल होगी, वह बेहद गोरी, कद करीब 5’3” लंबे घने घुंघराले बाल और दिखने में बेहद खूबसूरत व कमसिन है। वह महंगे सलवार-सूट में ही आती थी। एक अभिजात्य वर्ग की चमक उसके चेहरे पर साफ झलकती है।
कभी-कभी वो अपने बालों का जूड़ा बनाकर आती थी.. तो और भी अधिक खूबसूरत दिखती थी।
मैं 35 वर्षीय सांवला, कद 5’5” वजन 65 कि.ग्रा. एक साधारण कद काठी का मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ।
स्वभाव से शर्मिला एवं संकोची होने के कारण सहसा किसी से मिलने-जुलने में कतराता हूँ।
जिस दिन मैं स्कूल जाता हूँ तो सामान्यतः एकाध पत्रिका अपने साथ जरूर रखता हूँ और बच्चे को स्कूल में छोड़कर बगीचे के लान में किसी एकान्त जगह पर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ता रहता हूँ।
बीच-बीच में पुरूषजन्य निर्बलता के वशीभूत तिरछी निगाहों से मिसेज भाटिया की ओर जरूर देख लेता हूँ।
यदि कभी हमारी नजरें मिल जातीं.. तो मत पूछिए मारे शर्म के मेरी हालत पतली हो जाती है। पता नहीं क्या सोच रही होगी वो मेरे बारे में?
इसी तरह दिन बीतने लगे।
एक माह.. दो माह.. तीन माह.. इस बीच मिसेज भाटिया से मेरी थोड़ी बहुत बात होने लगी थी। वो ऊपर से जितनी गंभीर नजर आती थी.. उतनी थी नहीं।
शुरूआत उसी ने की थी।
एक दिन शनिवार को वो चिकन वर्क वाला गुलाबी कुर्ता और प्रिंटेड सलवार में आई थी। उसने कुर्ते के साथ मैच करती हुई गुलाबी कांच की चूड़ियाँ भी पहन रखी थीं।
उस दिन वो बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही थी। यह महज संयोग था या कुछ और कि उस दिन हमारी निगाहें चार-पांच बार मिलीं।
दरअसल मैं यह देख रहा था कि वो मेरी ओर देख रही है या नहीं।
सम्भवतः उसने भी यही सोचा था। उस दिन वो खुद मेरे पास आई और मेरा अभिवादन करके मुझसे बोली- भाई साहब क्या पढ़ रहे हैं?
मैं हकला गया, बोला- इ..इंडिया टुडे..
यह कहकर मैंने पत्रिका को उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने मेरे हाथ से पत्रिका लेकर खड़े-खड़े ही दो-चार पन्ने पलटे और पत्रिका को मुझे वापस कर दिया।
मेरे मुँह से अनायास निकल गया- बैठिये ना..
उसने मुस्कुराकर अर्थपूर्ण नजरों से मेरी और देखा और बहुत ही मधुर और कोमल स्वर में विनम्रता पूर्वक कहा- आज नहीं… फिर कभी।
यह मेरा उससे पहला वार्तालाप था। उस दिन मैं रात भर नहीं सो सका था। अगले शनिवार को फिर उससे मुलाकात हुई। हम लोग काफी देर साथ बैठे और गपशप करते रहे।
फिर तो यह हमेशा का जैसे रूटीन हो गया, हम हर शनिवार को साथ रहते और आपस में घर परिवार और इधर-उधर की बातें किया करते।
अब हम काफी खुल चुके थे।
उसने मुझे बताया कि उनके पति अपने परिवार के भौतिक सुख साधनों का तो बहुत ख्याल रखते थे.. परन्तु अपनी पत्नी की शारीरिक प्यास को मिटाने में विशेष रूचि नहीं लेते हैं। जिसका कारण संभवतः उनका अपने व्यवसाय में अत्यधिक शारीरिक व मानसिक परिश्रम और प्रतिदिन देर रात को बहुत अधिक शराब पीकर घर लौटना था।
मिसेज भाटिया के पहल करने पर ही कभी-कभी उनमें संभोग संभव हो पाता था.. वह भी औपचारिकता जैसा।
मिसेज भाटिया ने बताया कि उन्हें कभी भी सेक्स की चरम सीमा का अनुभव नहीं हो पाया।
संभवतः मेरी पत्नी ने मिसेज भाटिया के साथ हमारे सेक्स संबंधों की चर्चा की होगी और बताया होगा कि सेक्स के मामले में मैं अपनी पत्नी को कैसे नेस्तनाबूत कर देता हूँ और कैसे हम रात भर विभिन्न आसनों में सेक्स का आनन्द उठाते हैं।
क्योंकि इधर कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा था कि मिसेज भाटिया मुझसे खुलकर बात करने लगी थी और जैसे हर शनिवार को वो मेरी प्रतीक्षा किया करती थी। कभी बात-बात में किसी बहाने से वो मेरा स्पर्श भी कर लेती थी।
इधर उसके लिबास में भी कुछ परिवर्तन मैं महसूस करने लगा था। अब पहले की तुलना में उसका सलवार-कमीज कुछ अधिक टाइट नजर आने लगा था जिससे उसके सीने के उभार के साथ-साथ पेट और कूल्हे स्पष्ट दिखने लगे थे।
उसके कुर्ते के भीतर से ब्रा साफ नजर आती थी। यह सब देखकर मेरा मन भी डोलने लगता था।
इसी तरह तीन माह और बीत गए। माह दिसम्बर की एक शनिवार.. ठंड काफी पड़ने लगी थी। हल्का-हल्का कोहरा छंटने लगा था। मैं स्कूल पहुँचा, देखा मिसेज भाटिया आसमानी सलवार कुर्ते में मेहरून शाल ओढ़कर मानो मेरा ही इंतजार कर रही है।
उसने अपने घने काले घुंघराले बालों को जूड़े की शक्ल में बाँध रखा था और इतनी गजब की खूबसूरत लग रही थी कि लफ्जों में बयान करना मुमकिन नहीं था।
वह मुझे एक ओर ले गई और कहा- आज आपको मेरी एक बात माननी होगी।
उसकी आंखों में शरारत साफ झलक रही थी।
‘मतलब?’ मैंने पूछा।
उसने कहा- आज कुछ पल मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ।
एक आनन्द मिश्रित आश्चर्य से मैंने उसकी ओर देखा और पूछा- मगर कैसे? कहाँ?
‘इसकी चिन्ता आप न करें, मैंने पास के लाज में एक कमरा बुक कर लिया है..’ उसने कहा। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखकर कहा- तो?
‘तो क्या.. चलिए.. अभी साढ़े नौ बजे हैं। अपने पास ढाई बजे तक का समय है… सोच क्या रहे हैं.. चलिए जल्दी..’
यह कहकर वो लगभग खींचते हुए मुझे अपनी कार के पास ले गई और दरवाजा खोलकर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गई।
पांच मिनट में हम एक आलीशान होटल के सामने खड़े थे।
वह एक थ्री-स्टार होटल था। काउन्टर से उसने रूम की चाबी ली और हम तीसरे मंजिल पर एक आलीशान डीलक्स डबल बेडरूम में थे। उसने बैरे से कुछ कहा।
थोड़ी देर में वो शैम्पेन की एक बोतल, दो गिलास और कुछ स्नैक्स रख गया।
उसने अपना शाल एक ओर फेंककर शैम्पेन के दो गिलास बनाए और एक मेरी ओर बढ़ा दिया।
मेरे मना करने पर उसने कहा- आज पी लीजिए.. मेरी खातिर..
मैंने डरते-डरते गिलास उसके हाथ से ले लिया और एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया।
इसके बाद कुछ पैग और चले और कुछ ही पलों में शराब ने अपना काम करना शुरू कर दिया था और मैंने भी।
मैंने मिसेज भाटिया को अपने सीने में भींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
वो कसमसाई और फिर वो मुझ पर चुम्बनों की बौछार सी करने लगी।
मैंने उसके कुर्ते के हुक को खेालकर ऊपर उठा दिया और उसके संगमरमरी शफ्फाक बदन को देखता ही रह गया।
मैं उसे बिस्तर पर लिटाकर अपनी उंगलियों और होंठों से उसके पूरे बदन को चूमने लगा।
वो खुशी और आनन्द से छटपटाने लगी।
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फिर उसने खुद ही अपने ब्रा का हुक खोलकर अपने बदन से अलग कर दिया। मैंने उसके दोनों सुडौल उरोजों से खेलना शुरू कर दिया।
मैंने उसके दोनों उरोजों के चारों ओर अपनी दोनों हथेलियों को नीचे से ऊपर तक.. दाहिने से बाएँ तक आहिस्ता-आहिस्ता फेरना शुरू किया और अंत में निप्पल तक पहुँच कर अपनी पाँचों उंगलियों के अग्रभाग से धीरे-धीरे सहलाकर फिर नीचे से ऊपर फेरता रहा।
इसी के साथ उसके दोनों रसभरे होंठों को अपने मुँह में लेकर जीभ को उसके जीभ को सहलाता रहा।
मैंने उसके होंठों को मुँह के भीतर लेकर उसे चूसना शुरू कर दिया और बीच-बीच में अपने दांतों से धीरे-धीरे उसके होंठों को काटने लगा।
वो आनन्द मिश्रित दर्द से कराहने लगी।
अचानक वो उठी और मेरी शर्ट का बटन खोलकर मेरे सीने में हाथ फेरने लगी।
मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके नग्न सीने को अपने सीने से दबाने लगा। अब उसके निप्पल पर मैंने अपने निप्पल को रखकर अपने सीने से उसके सीने को सहलाना शुरू किया।
उसे बहुत अच्छा लग रहा था.. मुझे भी। मैंने धीरे से उसकी सलवार का बंधन खोलकर उसे पूर्णतः नग्न कर दिया।
अब मिसेज भाटिया का पूर्णतः नग्न जिस्म मेरे सामने था। मैंने अपनी भी पैंट तथा चड्डी उतार दी और बिल्कुल नग्न उसके सामने खड़ा हो गया।
मेरा लिंग बिल्कुल तैयार था और मिसेज भाटिया की योनि में समाने के लिए बेकरार।
मेरा लिंग देखकर मिसेज भाटिया आश्चर्यचकित हो गई.. बोली- बाप रे इतना बड़ा? आपको देखकर नहीं लगता कि आपका इतना बड़ा होगा।
मैंने उसके गाल पर प्यार से एक चपत लगाकर उसे पलंग पर बैठने का इशारा किया।
वो बैठ गई तो मैंने उसे पलंग के सिरहाने टिक कर बैठने के लिए कहा।
अब मैंने अपने बांहों को मिसेजभाटिया की गोरी गुंदाज जंघाओं के नीचे से ले जाकर उसके पैरों को अपनी पीठ पर रख दिया और अपने कानों तथा गालों को उसके जंघाओं से स्पर्श कराते हुए अपने मुँह को उसके योनिद्वार पर रख दिया। उसके दोनों हाथ पलंग के सिरहाने के दोनों ओर थे। मेरे हाथों के दोनों पंजे उसके दोनों उत्तेजीत स्तनों का मर्दन कर रहे थे और मैं अपने होंठ, जीभ, दांत से उसकी योनि और भगनासा को उद्वेलित कर रहा था।
वो छटपटा रही थी, कराह रही थी, उसकी आनन्द मिश्रित उत्तेजना पूर्ण कराहने की ध्वनि मुझे और अधिक उत्तेजित कर रही थी।
‘आआओं ना… अब आ जाओ.. अब रहा नहीं जा रहा.. आआह.. ऊँउउह..’
अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था, मैंने घुटने के बल बैठकर उसके उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखा और उसकी गोरी गुंदाज जंघाओं को खींच कर भूखे भेड़िये की तरह पूर्णतया उत्तेजित अपने लिंग को उसकी चूत के द्वार पर रखा और एक जोरदार शॉट मारा।
‘आआहह..’ वो चीखी और मेरा लम्बा मोटा लिंग पूरा का पूरा उसकी योनि में समा गया।
उसके बाद मैं पोजिशन बदल-बदल कर शॉट पर शॉट मारता चला गया, वो भी अपने नितम्बों को उठा उठा कर मेरे संभोग का पूरा आनन्द उठा रही थी।
काफी देर तक मैं अपने लिंग के घर्षण से उसकी योनि और संपूर्ण जननेन्द्रियों को तृप्त करता रहा, मेरी रफ्तार तेज हो गई थी और मैं चरमोत्कर्ष आनन्द के साथ अपने अन्दर के पुरूषत्व को लिंगद्वार से उसके योनि के भीतर.. बहुत भीतर तक स्लखित कर दिया और निढाल होकर उसके ऊपर गिर गया।
वो भी मुझसे लिपट कर बहुत देर तक निढाल पड़ी रही।
अचानक हमें स्कूल का ध्यान आया, ढाई बज चुके थे, हम जल्दी-जल्दी तैयार हुए, एक-दूसरे को प्यार भरी नजरों से देखा.. आलिंगनबद्ध हुए और उसके होंठों पर होंठ रखकर एक भरपूर चुम्बन लिया।
उसने मेरी ओर देखा और न जाने क्यों शरमाकर नजरें झुका लीं।
हम होटल से निकले।
स्कूल पहुँच कर देखा अभी-अभी छुट्टी हुई है.. बच्चे निकल ही रहे हैं।
मैंने अपने बच्चे को गोद में उठाकर उसे अपने बांहों में भर लिया।
मैंने देखा मिसेज भाटिया ने भी अपने बच्ची को गोद में उठाकर अपने अंक में भर लिया है।
अपने बेटे को इसी साल एक नर्सरी स्कूल में दाखिला कराया है परन्तु दिक्कत यह है कि स्कूल हमारे घर से लगभग 35 कि.मी. दूर है। स्कूल अच्छा है इसलिए अधिक फीस होने के बावजूद इसी स्कूल में दाखिला कराया।
स्कूल की टाइमिंग सुबह नौ बजे से दोपहर तीन बजे है। हम सुबह नौ बजे से पहले तैयार होकर एक साथ घर से निकलते हैं, मैं अपने आफिस चला जाता हूँ, मेरी पत्नी बच्चे को लेकर स्कूल चली जाती है तथा दोपहर तीन बजे स्कूल की छुट्टी होने पर बच्चे को लेकर सीधे घर आ जाती है।
हर शनिवार तथा सप्ताह में एक-दो दिन मेरी छुट्टी होने पर अथवा छुट्टी लेकर मैं बच्चे को लेकर स्कूल जाता हूँ। घर दूर होने के कारण बार-बार आना-जाना नहीं हो पाता.. इसलिए हम स्कूल के सामने बगीचे के लान में टाईम पास कर लेते हैं। ऐसा अनेक बच्चों के माता-पिता.. जिनका घर दूर है, करते हैं।
मिसेज भाटिया की बच्ची भी उसी स्कूल में हमारे बच्चे की क्लासमेट है। उनका घर दूर होने के कारण वह भी हमारी तरह सुबह नौ बजे आती हैं और छुट्टी होने पर दोपहर तीन बजे अपने बच्चे को लेकर घर जाती हैं।
इस बीच मेरी पत्नी और मिसेज भाटिया स्कूल के सामने लान में बैठकर अपना समय व्यतीत करते हैं। जिस दिन मेरी पत्नी की जगह मैं स्कूल जाता हूँ, उस दिन मिसेज भाटिया काफी उदास हो जाती हैं.. क्योंकि अकेले-अकेले उनका भी समय पास नहीं होता।
दूसरी महिलाएँ भी वहाँ होती हैं.. पर न जाने क्यों वो मेरी पत्नी के अलावा और किसी से ज्यादा मिक्सअप नहीं होती हैं।
मिस्टर भाटिया का अपना लोहे का बहुत बड़ा कारोबार है, वो सुबह 7 बजे फैक्टरी के लिए निकाल जाते हैं तथा देर रात लौटते हैं। इसलिए मिसेज भाटिया को ही प्रतिदिन अपने बच्चे को लाने.. ले जाने के लिए आना पड़ता है।
मिसेज भाटिया की उम्र लगभग 26-27 साल होगी, वह बेहद गोरी, कद करीब 5’3” लंबे घने घुंघराले बाल और दिखने में बेहद खूबसूरत व कमसिन है। वह महंगे सलवार-सूट में ही आती थी। एक अभिजात्य वर्ग की चमक उसके चेहरे पर साफ झलकती है।
कभी-कभी वो अपने बालों का जूड़ा बनाकर आती थी.. तो और भी अधिक खूबसूरत दिखती थी।
मैं 35 वर्षीय सांवला, कद 5’5” वजन 65 कि.ग्रा. एक साधारण कद काठी का मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ।
स्वभाव से शर्मिला एवं संकोची होने के कारण सहसा किसी से मिलने-जुलने में कतराता हूँ।
जिस दिन मैं स्कूल जाता हूँ तो सामान्यतः एकाध पत्रिका अपने साथ जरूर रखता हूँ और बच्चे को स्कूल में छोड़कर बगीचे के लान में किसी एकान्त जगह पर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ता रहता हूँ।
बीच-बीच में पुरूषजन्य निर्बलता के वशीभूत तिरछी निगाहों से मिसेज भाटिया की ओर जरूर देख लेता हूँ।
यदि कभी हमारी नजरें मिल जातीं.. तो मत पूछिए मारे शर्म के मेरी हालत पतली हो जाती है। पता नहीं क्या सोच रही होगी वो मेरे बारे में?
इसी तरह दिन बीतने लगे।
एक माह.. दो माह.. तीन माह.. इस बीच मिसेज भाटिया से मेरी थोड़ी बहुत बात होने लगी थी। वो ऊपर से जितनी गंभीर नजर आती थी.. उतनी थी नहीं।
शुरूआत उसी ने की थी।
एक दिन शनिवार को वो चिकन वर्क वाला गुलाबी कुर्ता और प्रिंटेड सलवार में आई थी। उसने कुर्ते के साथ मैच करती हुई गुलाबी कांच की चूड़ियाँ भी पहन रखी थीं।
उस दिन वो बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही थी। यह महज संयोग था या कुछ और कि उस दिन हमारी निगाहें चार-पांच बार मिलीं।
दरअसल मैं यह देख रहा था कि वो मेरी ओर देख रही है या नहीं।
सम्भवतः उसने भी यही सोचा था। उस दिन वो खुद मेरे पास आई और मेरा अभिवादन करके मुझसे बोली- भाई साहब क्या पढ़ रहे हैं?
मैं हकला गया, बोला- इ..इंडिया टुडे..
यह कहकर मैंने पत्रिका को उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने मेरे हाथ से पत्रिका लेकर खड़े-खड़े ही दो-चार पन्ने पलटे और पत्रिका को मुझे वापस कर दिया।
मेरे मुँह से अनायास निकल गया- बैठिये ना..
उसने मुस्कुराकर अर्थपूर्ण नजरों से मेरी और देखा और बहुत ही मधुर और कोमल स्वर में विनम्रता पूर्वक कहा- आज नहीं… फिर कभी।
यह मेरा उससे पहला वार्तालाप था। उस दिन मैं रात भर नहीं सो सका था। अगले शनिवार को फिर उससे मुलाकात हुई। हम लोग काफी देर साथ बैठे और गपशप करते रहे।
फिर तो यह हमेशा का जैसे रूटीन हो गया, हम हर शनिवार को साथ रहते और आपस में घर परिवार और इधर-उधर की बातें किया करते।
अब हम काफी खुल चुके थे।
उसने मुझे बताया कि उनके पति अपने परिवार के भौतिक सुख साधनों का तो बहुत ख्याल रखते थे.. परन्तु अपनी पत्नी की शारीरिक प्यास को मिटाने में विशेष रूचि नहीं लेते हैं। जिसका कारण संभवतः उनका अपने व्यवसाय में अत्यधिक शारीरिक व मानसिक परिश्रम और प्रतिदिन देर रात को बहुत अधिक शराब पीकर घर लौटना था।
मिसेज भाटिया के पहल करने पर ही कभी-कभी उनमें संभोग संभव हो पाता था.. वह भी औपचारिकता जैसा।
मिसेज भाटिया ने बताया कि उन्हें कभी भी सेक्स की चरम सीमा का अनुभव नहीं हो पाया।
संभवतः मेरी पत्नी ने मिसेज भाटिया के साथ हमारे सेक्स संबंधों की चर्चा की होगी और बताया होगा कि सेक्स के मामले में मैं अपनी पत्नी को कैसे नेस्तनाबूत कर देता हूँ और कैसे हम रात भर विभिन्न आसनों में सेक्स का आनन्द उठाते हैं।
क्योंकि इधर कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा था कि मिसेज भाटिया मुझसे खुलकर बात करने लगी थी और जैसे हर शनिवार को वो मेरी प्रतीक्षा किया करती थी। कभी बात-बात में किसी बहाने से वो मेरा स्पर्श भी कर लेती थी।
इधर उसके लिबास में भी कुछ परिवर्तन मैं महसूस करने लगा था। अब पहले की तुलना में उसका सलवार-कमीज कुछ अधिक टाइट नजर आने लगा था जिससे उसके सीने के उभार के साथ-साथ पेट और कूल्हे स्पष्ट दिखने लगे थे।
उसके कुर्ते के भीतर से ब्रा साफ नजर आती थी। यह सब देखकर मेरा मन भी डोलने लगता था।
इसी तरह तीन माह और बीत गए। माह दिसम्बर की एक शनिवार.. ठंड काफी पड़ने लगी थी। हल्का-हल्का कोहरा छंटने लगा था। मैं स्कूल पहुँचा, देखा मिसेज भाटिया आसमानी सलवार कुर्ते में मेहरून शाल ओढ़कर मानो मेरा ही इंतजार कर रही है।
उसने अपने घने काले घुंघराले बालों को जूड़े की शक्ल में बाँध रखा था और इतनी गजब की खूबसूरत लग रही थी कि लफ्जों में बयान करना मुमकिन नहीं था।
वह मुझे एक ओर ले गई और कहा- आज आपको मेरी एक बात माननी होगी।
उसकी आंखों में शरारत साफ झलक रही थी।
‘मतलब?’ मैंने पूछा।
उसने कहा- आज कुछ पल मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ।
एक आनन्द मिश्रित आश्चर्य से मैंने उसकी ओर देखा और पूछा- मगर कैसे? कहाँ?
‘इसकी चिन्ता आप न करें, मैंने पास के लाज में एक कमरा बुक कर लिया है..’ उसने कहा। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखकर कहा- तो?
‘तो क्या.. चलिए.. अभी साढ़े नौ बजे हैं। अपने पास ढाई बजे तक का समय है… सोच क्या रहे हैं.. चलिए जल्दी..’
यह कहकर वो लगभग खींचते हुए मुझे अपनी कार के पास ले गई और दरवाजा खोलकर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गई।
पांच मिनट में हम एक आलीशान होटल के सामने खड़े थे।
वह एक थ्री-स्टार होटल था। काउन्टर से उसने रूम की चाबी ली और हम तीसरे मंजिल पर एक आलीशान डीलक्स डबल बेडरूम में थे। उसने बैरे से कुछ कहा।
थोड़ी देर में वो शैम्पेन की एक बोतल, दो गिलास और कुछ स्नैक्स रख गया।
उसने अपना शाल एक ओर फेंककर शैम्पेन के दो गिलास बनाए और एक मेरी ओर बढ़ा दिया।
मेरे मना करने पर उसने कहा- आज पी लीजिए.. मेरी खातिर..
मैंने डरते-डरते गिलास उसके हाथ से ले लिया और एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया।
इसके बाद कुछ पैग और चले और कुछ ही पलों में शराब ने अपना काम करना शुरू कर दिया था और मैंने भी।
मैंने मिसेज भाटिया को अपने सीने में भींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
वो कसमसाई और फिर वो मुझ पर चुम्बनों की बौछार सी करने लगी।
मैंने उसके कुर्ते के हुक को खेालकर ऊपर उठा दिया और उसके संगमरमरी शफ्फाक बदन को देखता ही रह गया।
मैं उसे बिस्तर पर लिटाकर अपनी उंगलियों और होंठों से उसके पूरे बदन को चूमने लगा।
वो खुशी और आनन्द से छटपटाने लगी।
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फिर उसने खुद ही अपने ब्रा का हुक खोलकर अपने बदन से अलग कर दिया। मैंने उसके दोनों सुडौल उरोजों से खेलना शुरू कर दिया।
मैंने उसके दोनों उरोजों के चारों ओर अपनी दोनों हथेलियों को नीचे से ऊपर तक.. दाहिने से बाएँ तक आहिस्ता-आहिस्ता फेरना शुरू किया और अंत में निप्पल तक पहुँच कर अपनी पाँचों उंगलियों के अग्रभाग से धीरे-धीरे सहलाकर फिर नीचे से ऊपर फेरता रहा।
इसी के साथ उसके दोनों रसभरे होंठों को अपने मुँह में लेकर जीभ को उसके जीभ को सहलाता रहा।
मैंने उसके होंठों को मुँह के भीतर लेकर उसे चूसना शुरू कर दिया और बीच-बीच में अपने दांतों से धीरे-धीरे उसके होंठों को काटने लगा।
वो आनन्द मिश्रित दर्द से कराहने लगी।
अचानक वो उठी और मेरी शर्ट का बटन खोलकर मेरे सीने में हाथ फेरने लगी।
मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके नग्न सीने को अपने सीने से दबाने लगा। अब उसके निप्पल पर मैंने अपने निप्पल को रखकर अपने सीने से उसके सीने को सहलाना शुरू किया।
उसे बहुत अच्छा लग रहा था.. मुझे भी। मैंने धीरे से उसकी सलवार का बंधन खोलकर उसे पूर्णतः नग्न कर दिया।
अब मिसेज भाटिया का पूर्णतः नग्न जिस्म मेरे सामने था। मैंने अपनी भी पैंट तथा चड्डी उतार दी और बिल्कुल नग्न उसके सामने खड़ा हो गया।
मेरा लिंग बिल्कुल तैयार था और मिसेज भाटिया की योनि में समाने के लिए बेकरार।
मेरा लिंग देखकर मिसेज भाटिया आश्चर्यचकित हो गई.. बोली- बाप रे इतना बड़ा? आपको देखकर नहीं लगता कि आपका इतना बड़ा होगा।
मैंने उसके गाल पर प्यार से एक चपत लगाकर उसे पलंग पर बैठने का इशारा किया।
वो बैठ गई तो मैंने उसे पलंग के सिरहाने टिक कर बैठने के लिए कहा।
अब मैंने अपने बांहों को मिसेजभाटिया की गोरी गुंदाज जंघाओं के नीचे से ले जाकर उसके पैरों को अपनी पीठ पर रख दिया और अपने कानों तथा गालों को उसके जंघाओं से स्पर्श कराते हुए अपने मुँह को उसके योनिद्वार पर रख दिया। उसके दोनों हाथ पलंग के सिरहाने के दोनों ओर थे। मेरे हाथों के दोनों पंजे उसके दोनों उत्तेजीत स्तनों का मर्दन कर रहे थे और मैं अपने होंठ, जीभ, दांत से उसकी योनि और भगनासा को उद्वेलित कर रहा था।
वो छटपटा रही थी, कराह रही थी, उसकी आनन्द मिश्रित उत्तेजना पूर्ण कराहने की ध्वनि मुझे और अधिक उत्तेजित कर रही थी।
‘आआओं ना… अब आ जाओ.. अब रहा नहीं जा रहा.. आआह.. ऊँउउह..’
अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था, मैंने घुटने के बल बैठकर उसके उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखा और उसकी गोरी गुंदाज जंघाओं को खींच कर भूखे भेड़िये की तरह पूर्णतया उत्तेजित अपने लिंग को उसकी चूत के द्वार पर रखा और एक जोरदार शॉट मारा।
‘आआहह..’ वो चीखी और मेरा लम्बा मोटा लिंग पूरा का पूरा उसकी योनि में समा गया।
उसके बाद मैं पोजिशन बदल-बदल कर शॉट पर शॉट मारता चला गया, वो भी अपने नितम्बों को उठा उठा कर मेरे संभोग का पूरा आनन्द उठा रही थी।
काफी देर तक मैं अपने लिंग के घर्षण से उसकी योनि और संपूर्ण जननेन्द्रियों को तृप्त करता रहा, मेरी रफ्तार तेज हो गई थी और मैं चरमोत्कर्ष आनन्द के साथ अपने अन्दर के पुरूषत्व को लिंगद्वार से उसके योनि के भीतर.. बहुत भीतर तक स्लखित कर दिया और निढाल होकर उसके ऊपर गिर गया।
वो भी मुझसे लिपट कर बहुत देर तक निढाल पड़ी रही।
अचानक हमें स्कूल का ध्यान आया, ढाई बज चुके थे, हम जल्दी-जल्दी तैयार हुए, एक-दूसरे को प्यार भरी नजरों से देखा.. आलिंगनबद्ध हुए और उसके होंठों पर होंठ रखकर एक भरपूर चुम्बन लिया।
उसने मेरी ओर देखा और न जाने क्यों शरमाकर नजरें झुका लीं।
हम होटल से निकले।
स्कूल पहुँच कर देखा अभी-अभी छुट्टी हुई है.. बच्चे निकल ही रहे हैं।
मैंने अपने बच्चे को गोद में उठाकर उसे अपने बांहों में भर लिया।
मैंने देखा मिसेज भाटिया ने भी अपने बच्ची को गोद में उठाकर अपने अंक में भर लिया है।
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